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पेट एवं गुदा रोगों का सफलतम इलाज

हम सब आजकल अपने चारों तरफ लोगों को पेट के रोग जैसे कब्ज़, गैस, एसिडिटी, कोलाइटिस, IBS (आई.बी.एस.), अल्सरेटिव कोलाइटिस, पेट फूलना (अफरा ) एवं इन सब बिमारिओ की वजह से उलझन बेचैनी घबराहट चक्कर आना, सिरदर्द , उलटी लगना, मुँह में खट्टा पानी आना, नींद न आना अथवा अकेले में रहने का मन करना अथवा अकेले में रोने का मन करना से लेकर आत्महत्या तक के विचार आने लगते हैं और मरीज़ बेहद कमज़ोरी महसूस करने लगता है| और ज़्यादातर मरीज जो उपर्युक्त लक्षणों से ग्रस्त होते है वे अंततः गुदा रोगों से पीड़ित हो ही जाते हैं | हम आजकल अपने चारों  ओर कितने ही लोगों को गुदा रोगों जैसे बवासीर, भगन्दर, फिसर, फोड़ा, पाइलोनायडल साइनस, पोलिप, पैपिला इत्यादि रोगों से ग्रस्त होकर आपस में चर्चा करते देखते हैं| 

आयुर्वेद में स्पष्ट लिखा है कि " रोगाः सर्वेअपि मन्देअग्नौ सुत्रामुद्राणि च " अर्थांत शरीर में होने वाले समस्त और समस्त रोग पेट की मंद अग्नि अर्थात अग्निमांद की वजह से ही होते है| 
 

अब यह कहने की आवशयकता नहीं कि यदि देश की ज़्यादातर (९५% - ९८%) जनसँख्या किसी न किसी रोग से पीड़ित है तो उसको पेट की कोई तकलीफ न हो| 

हममें से अधिकतर लोग पेट की किसी न किसी समस्या से जूझ रहे हैं| 

पेट रोग के मुख्या करण :

अनियमित दिनचर्या -  आज हम अपने चरों तरफ देखते हैं की व्यक्ति की दिनचर्या पूर्णतया विकृत है, व्यक्ति के सोने-जागने, खान-पान से लेकर मलत्याग तक का समय नियत नहीं हैं| 

अनियमित खान-पान:  आजकल ज़्यादातर लोग अति महत्वाकांछी एवं शोशे बाज़ी अथवा दिखावापन से ग्रस्थ हैं| और इसकी वजह से स्वास्थ के लिए हितकर खान-पान से विरक्त हैं|  लोग फ़ास्ट फ़ूड बसी खाना एवं होटल भोगी हो गए हैं| दाल चावल सब्ज़ी रोटी दूध दही घी सलाद खीर पनीर जो अपने संस्कृति का मुख्य आहार था उससे दूर होते जा रहे हैं और मांस भक्षी बनकर स्वयं ही रोगी बनकर नरक भोग रहे हैं|    

जल का अधिक मात्रा में सेवन करना: ज़्यादातर लोगों में एक आदत सी होती है मुफ्त की सलाह देने की जिसमें पेट साफ़ नहीं हो रहा हैं तो ज़्यादा पानी पियो, वजन काम करना हैं तो ज़्यादा पानी पियो, पेशाब में जलन हैं तो ज़्यदा पानी पियो, शरीर से पथरी बहार निकालना हैं तो ज़्यादा पानी पियो आदि आदि|  जबकि इस पृथ्वी के किसी भी विज्ञान की किसी भी संहिता में ज़्यादा पानी पीने के लिए नहीं लिखा हैं, वरन न्यूनतम पर्याप्त मात्रा में जल के सेवन की ही प्रशंसा की गयी है | 

 

प्रयागराज में पेट दर्द का इलाज

 

मल इत्यादि के वेगों (pressure) को रोकने: आयुर्वेद में स्पष्ट रूप से लिखा है मल, मूत्र, गैस(अपान वायु), भूख , प्यास, नींद, जम्हाई, छींक, उल्टी, वीर्य का वेग, डकार इत्यादि के वेगों को रोकने से भी पेट के रोग होने की प्रबल संभावना रहती हैं जो अंततः गुदा रोगों की विकरालता के रूप में अपना रंग दिखती है| 

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